शम्बूक

रामराज्य के युग की कथा है, एक शूद्र अल्पविकसित ज्ञान के साथ तपस्या में लीन था, वह सिर लटका कर,पैरों को ऊपर डाल में फंसाये, एक वृक्ष पर तपस्यारत था, उसकी इस तपस्या से एक ब्राम्हण बालक मर गया, उस ब्राम्हण बालक का पिता उसकी मृत शरीर को लेकर राजा राम की राज्यसभा में पहुंचा और दहाड़ें मार कर रोने लगा। राजा राम ने उससे प्रश्न किया ," क्यों रो रहे हो?".... ब्राम्हण ने उत्तर दिया ," मेरा बालक मर गया,इसलिए रो रहा हूँ, और इस बालक की मृत्यु का कारण आप हो " राजा राम उसकी बात सुनकर स्तब्ध रह गए। उन्होंने उस ब्राम्हण से पूरा वृत्तांत जानना चाहा। उस ब्राम्हण ने उत्तर दिया,"आपके राज्य में एक शूद्र तपस्या कर रहा है, उसकी तपस्या के फल स्वरुप मेरा बालक मर गया।" राजा राम ने उस शूद्र की तलाश शुरू कर दी,और उस जगह पहुँच गए जहाँ वह शूद्र तपस्यारत था।

     राजा राम ने पूछा, " क्या कर रहे हो? ''  शम्बूक ने उत्तर दिया ," राजा राम आपका कल्याण हो! मैं शूद्र हूँ, और सदेह स्वर्ग जाना चाहता हूँ ,अर्थात अपने शरीर के रहते अपना स्वरुप जानना चाहता हूँ ,इसलिए यह प्रयोजन कर रहा हूँ " इतना सुनते ही राजा राम ने उसे वृक्ष से नीचे खींच लिया, और उसका सिर धड़ से अलग कर दिया। शंबूक की मृत्यु होते ही वो ब्राम्हण बालक जी गया,राजा राम की जय जयकार करता वह ब्राम्हण, अपने बालक को लेकर अपने घर की ओर प्रस्थान कर गया। स्वर्ग में देवताओं ने फूल बरसाए,धर्म पुनर्जीवित हो गया। बड़ी अजीब सी घटना लगी मुझे वो, कि एक शूद्र की तपस्या से किसी ब्राम्हण पुत्र की मृत्यु का क्या सम्बन्ध,और फिर उस शूद्र की मृत्यु के साथ वो ब्राम्हण पुत्र जीवित कैसे हो गया, ये कैसा अजीब कनेक्शन है।

     ये कथा जब मैंने पहली बार पढ़ी तो, बड़ा अजीब सा अहसास हुआ, सोचने लगा ये कैसा रामराज्य, जिसमें  किसी मनुष्य को इतना भी अधिकार नहीं हो, वो तपस्या भी न कर सके, वह भी मर्यादापुरुषोत्तम राजा राम के राज्य में, मेरे अवचेतन में वो कहानी इस कदर बैठ गयी कि, मैंने उस कथा को राजा राम की अपने पूरे जीवन में की गयी कई गलतियों में से एक मानने लगा। हिंदू धर्म कुरीतियों का भंडार है,ये बात मेरे दिमाग में गहरे तक बैठ गयी। मैं भी अपने आपको हिंदू धर्म का शम्बूक समझने लगा, मुझे शम्बूक से सहानुभूति महसूस होती थी, क्यूंकि उसका अल्पज्ञान ही उसकी कमजोरी सिद्ध हुई।
   
      यद्यपि  इतिहास राजा राम को एक अप्रतिम व्यक्तित्व बताता है, फिर भी मेरे मन के किसी एक कोने में राम के प्रति एक ग्लानि का अनुभव होने का एहसास जन्म लेने  लगा। कहीं मैंने ये बात पढ़ी थी, कि भारतीय संविधान के पहले पृष्ट पर राजा राम की तस्वीर चस्पा है,जो इस बात की गवाही देता है कि,भारतीय गणराज्य की रूपरेखा रामराज्य की तरह होगी,तो मेरे मन में ख्याल आया, "हो चुका !अब शम्बूकों का वध भी वैध ठहराने में हमारे नीति नियंता कोई कोर कसर नहीं छोड़ेंगे,'' ऐसा होता भी था, पिछले कुछ दशकों  के राजनैतिक नेतृत्व के दौरान, अब भी भले समय ने करवट ले ली हो, फिर भी, जब भी मैं ब्राम्हण समाज के किस्सों  से दो चार होता हूँ,तो कहीं न कहीं  ये घटना पुनर्जीवित हो जाती है, उनके विचारों में आज भी, मैं उस अधकचरी,अनुपयोगी, बकवास  विद्वता के  कोरे दम्भ को महसूस कर सकता हूँ ,शुक्र है, इस युग में कोई राजा राम मौजूद नहीं है, जिसके पास वो अपनी बेतुकी फरियाद ले जा सकें या फिर शम्बूक ही बदल गया है, अब वो अल्प विकसित ज्ञान का अहंकार न होकर, सबल, शिक्षित और परिपक़्व हो गया है।

     उस समय का रामराज्य एक राज्यतंत्र था,पर अब लोकतंत्र है,लोकतंत्र में शम्बूक का अपना महत्व है,जिसे जयप्रकाश नारायण ,राममनोहर लोहिया, जैसे नेताओं ने परिभाषित कर दिया और फिर इतिहास का चलन है, कि वो अपने आप को दोहराता है। अब शम्बूक के वंशधर भी आपको इस सत्ता की कुर्सी पर विराजमान दिखाई पड़ते है, जिसकी  दुहाई देकर उस ब्राम्हण ने शम्बूक का वध करवा दिया था। मजे की बात तो ये है, कि समय इतना बलवान होता है,उसकी पुनरावृत्ति इतनी असरदार होती  है,.........  कि आज  इस देश की सर्वोच्च राजनैतिक कुर्सी पर उसी शम्बूक के एक वंशधर विराजमान है।





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