अशुध्द कुआँ

लंच का समय। ...... खाने के बाद तो अक्सर गपबाजी होती ही रहती है। सब बारी बारी से अपना किस्सा सुना रहे थे, सभाजीत उस्ताद ने भी अपना एक किस्सा सुनाया, कहानी ऐसी थी, कि उनके रिश्तेदारों में उनके कोई फूफा लगते थे, जो राजगिरी  का काम करते थे, राजगिरी का मतलब तो सब जानते हैं, भाई, वही राजमिस्त्री का जो ईटों की जोड़ाई का काम करते हैं । किसी ब्राम्हण के यहाँ पर उनका काम लगा हुआ था, कुएं की मुंडेर बन रही थी। वो भी चुपचाप अपना काम कर रहे थे, तभी उस ब्राम्हण परिवार की एक नई नवेली बहू कुएं की मुंडेर के पास आकर खड़ी हो गयी, लम्बा सा घूँघट निकाले........  वे सारा सबब जानते थे कि, वो बहू  वहां क्यों  खड़ी थी ! फिर भी वो चुपचाप सिर झुकाये अपना काम करते रहे। दरअसल ,वे हरिजन थे और उस दुल्हन के दिमाग में बात आ गयी कि ,एक हरिजन की मौजूदगी में वह कुएं से पानी कैसे काढ़े,पानी अपवित्र जो हो जाता,काफी देर हो गयी, न तो वो कुछ बोल रही थी,और न ही वो वहां से हट रहे थे।

       अचानक घर के किसी पुरुष  सदस्य की निगाह उस जगह पड़ी, तो उसने दुल्हन से वहां इतनी देर तक खड़े रहने का कारण पूछा। दुल्हन ने प्रत्यक्ष में कुछ न बोलकर इशारे में उनकी तरफ ऊँगली दिखा दी, वो आदमी सारा माजरा समझ गया। उसने विनम्र स्वर में कहा," अरे, दद्दा थोड़ी देर हट जाते तो,ये दुल्हन कुएं से पानी काढ़ लेती।" दद्दा भी बड़े बेसुरे थे ,उन्होंने कहा ,'' तो काढ़ क्यों नहीं लेती, अरे मैं तो इतनी दूर खड़ा हूँ, मेरी तो परछाईं भी उस तक नहीं पहुँच रही,उसे दिक्कत क्या है।''उसने जवाब दिया,'' अरे, दद्दा आप चमार हैं,ये बात ये दुल्हन जानती है।
         इतना सुनते ही दद्दा और मुखर और कड़वे हो गए ,बोले ,''जानते हो ये कुआँ किसने खोदा है। नहीं जानते तो, मैं बता दूँ, ये कुआँ मेरे दादा पन्ना ने खोदा है,और जब कोई पैंतीस सैंतीस हाथ का कुआँ खोदेगा और इसी बीच उसे पेशाब लगेगी तो वो बाहर थोड़े निकलेगा,पेशाब करने, तब से ये कुआँ अब तक अशुद्ध नहीं हुआ तो,मैं जो कि, बाहर से इतनी दूर खड़े होकर अपना काम कर रहा हूँ, इतने दूर से ये और इसका पानी कैसे अपवित्र हो जायेगा।

         ये बात सुनते न सुनते, वो गृहस्थ शर्म से लाल, अपनी ही बहू को डांटना शुरू कर दिया, '' गपचुप अपना काम तो करेंगी नहीं,एक न एक पचखड़हर खड़ी कर देंगी, चल! चुपचाप पानी काढ़ के जा  '' इतनी बात सुनते तो दुल्हन भी,एक....  दो....  तीन....फरफराते हुए पानी काढ़ के घर के अंदर भाग गयी। हम सब भी हँसते हँसते लोट पोट हो गए। 

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