Being religious
पिछली कई सदियों से विदेशी विद्वानों,व्यापारियों,राजनीतिज्ञों,आक्रमणकारियों का निरंतर भारत में आगमन हुआ और लगभग सभी ने अपने संस्मरणों में या अपनी आत्मकथाओं में भारत में उस मौजूदा समय में लोगों द्वारा समय के अनुरूप प्रचलित धर्मों का उल्लेख ही नहीं अपितु उस मौजूदा समय के शासकों द्वारा विभिन्न धर्मों के प्रोत्साहन दिए जाने का भी उल्लेख अपने द्वारा रचित लेखों में स्पष्ट किया है तक़रीबन सभी ने भारतीय जनमानस की अवधारणा को यथोचित उकेरा है एवं उसकी प्रशंसा की है क्यूंकि इस सन्दर्भ में धर्म की विवेचना तो अपनी जगह है उस धर्म को माननेवाले उसके अनुयायियों की महानता को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता है,उनकी सहिष्णुता एवं अपने द्वारा भिन्न धर्मों के विचारों को अवशोषित करने की क्षमता को नगण्य दृष्टि से देखना उस जनमानष का अपमान होगा इस जनमानस ने अपने ऊपर विदेशी आक्रमण को ,अपने ऊपर हुए ज़ुल्मों को,अपने शोषण को तरजीह न देकर अपने अंदर उनकी अच्छाइयों एवं बुराईयों को भली भांति समाहित किया है ये ठीक रज्जब साहब की उन पंक्तियों की याद दिलाता है जिसमे उन्हों ने कहा है
रज्जब भर्यो शराब से टूट गयो बीच गंग,नाम रूप सब मिट गयो रह्यो गंग को गंग
रज्जब भर्यो शराब से टूट गयो बीच गंग,नाम रूप सब मिट गयो रह्यो गंग को गंग
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