हिंदी साहित्य के धूमकेतु :फणीश्वर नाथ रेणु

हिंदी साहित्य के धूमकेतु :फणीश्वर नाथ रेणु



मेरी स्मृतियों में अपने पाठ्यक्रम की कई कहानियों एवं उनके लेखकों का समावेश है,उन सबका हिंदी साहित्य में अपना अपना  एक अलग स्थान एवं योगदान है,परन्तु जिस लेखक का मैं उल्लेख कर रहा हूँ ,उनका नाम है, फणीश्वर नाथ रेणु ,वे अपनी कथाकहानियों के माध्यम से भारतीय ग्रामीण परिवेश की समस्याओं का एक मूक दर्शक के बजाय, एक भोक्ता के रूप में यथार्थपूर्ण वर्णन करते हैं। उनकी कहानियां भारतीय समाज के साथ एक आत्मीयता एवं तादात्म्य स्थापित करती हैं। उनमें संवेदना एवं निरीक्षण की अपूर्व शक्ति है,वो अपनी कहानियों में आंचलिकता का पुट देते है,एवं अपनी किस्सागोई को एक कुशल शिल्पकार की भाँति तराशकर उसे एक नई दिशा,एक नया संस्कार देते हैं, कहानी के वातावरण को वास्तविकता का रूप देने में वे सिद्धहस्त हैं। वे अपनी कहानियों में पात्रों को,उसकी घटनाओं और भावचित्रों के बाहुल्य एवं बिखराव होने के बावजूद,अत्यंत ही सधे ढंग से एक विशेष बिंदु अथवा मुहूर्त की ओर मोड़ने में माहिर है,जिसके फलस्वरूप कहानी का प्रभाव सघन,मार्मिक,एवं स्थायी हो उठता है,उनकी रचित एक कहानी का स्मरण मुझे अक्सर हो उठता है,जो इतनी रोचक थी,कि इस कहानी के कथा तंतु मेरी याददाश्त के तारों को आज भी छेड़ देते हैं,परिणामस्वरूप ये कहानी इतने वर्षों के बाद भी मुझे याद है,इस कहानी का शीर्षक था,'पंचलाइट ' पंचलाइट का अर्थ है,पेट्रोमैक्स अथवा
गैस की लालटेन। 
      रेणुजी द्वारा लिखित इस कहानी में भोलेभाले ग्रामीण जीवन का वास्तविक चित्र खींचा गया है। महतो टोली में गांव के कुछ अशिक्षित लोग हैं। जो अपनी जाति के सरदार,दीवान,पंच एवं छड़ीदार हैं।गांव की अन्य पंचायतों की नक़ल करते हुए उन्होंने दंड एवं जुर्माने की जमा की गयी रकम से रामनवमी के मेले से एक पेट्रोमैक्स खरीदा,इस पेट्रोमैक्स को गांव वाले पंचलैट कहकर पुकारते हैं,पंचलैट खरीदने के बाद जो दस रूपये बच जाते हैं,उनसे पूजा के सामग्री आ गयी,सबको पंचलैट आने की प्रसन्नता है,इस ख़ुशी में कीर्तन का आयोजन किया गया है। थोड़ी देर में टोली के सभी लोग पंचलैट को देखने के लिए सरदार के यहाँ एकत्रित होते हैं। सरदार पंचलैट खरीदने का सारा किस्सा गांव वालों को बड़ी बढ़ी चढ़ी बातों के साथ सुनाते हैं,जिससे टोली के लोगों की उनके सरदार,और दीवान के प्रति श्रद्धा बढ़ जाती है। लेकिन... तभी एक अवरोध उत्पन्न हो जाता है,जब बनिए के दुकान से पंचलैट को जलाने के लिए केरोसिन का तेल खरीदकर लाया जाता है,प्रश्न ये उठता है के पंचलैट जलाएगा कौन?खरीदने से पहले किसी के मष्तिष्क में यह बात नहीं आयी थी। दूसरी और जातियों द्वारा उनकी जाति के लोगों का मज़ाक उड़ाने का,एवं तानाकशी का सिलसिला शुरू हो गया,यह निर्णय हुआ कि,दूसरी पंचायत के आदमी की मदद से पंचलैट नहीं जलाया जायेगा।चाहे वो बिना जले ही पड़ा रहे,आज किसी ने अपने घर में ढिबरी भी नहीं जलाई थी। पंचलैट के न जलने से पंचो के चेहरे उतर जाते हैं,उसपर राजपूत टोली के लोग उनका मज़ाक बनाने लगे,लेकिन सबने धैर्यपूर्वक उस मज़ाक को सहन किया। गुलरी काकी की बेटी,मुनरी भी वहीं बैठी है,उसे पता है कि,गोधन पंचलैट जलाना जानता है,लेकिन पंचायत ने गोधन का हुक्का पानी बंद करके उसे जाति से बाहर कर दिया है,जिसकी वजह उसकी माँ,गुलरी काकी है,जिस ने पंचायत से गोधन की शिकायत करके,उसपर मुनरी को देखकर आँख का इशारा करने,और सलीमा वाला गाना गाने का आरोप लगाया है।पंचायत को भी गोधन को बाहर करने का एक बहाना चाहिए था,क्यूंकि एक तो गोधन दुसरे गांव से आकर वहां रह रहा था,जिसकी एवज में पंचायत को पान सुपारी का खर्च देने के बजाय,उनसे ही सींग लड़ाता रहता था,और पंचायत और उसके पंचो की परवाह भी नहीं करता था। हालाँकि,मुनरी गोधन को मन ही मन चाहती थी,उससे प्रेम करती थी। मुनरी ने युक्ति निकाली,उसने यह बात अपनी सहेली कनेली के कानों में फुसफुसाकर बता दी,बस काम हो गया,कनेली ने मुनरी की तरफ मुस्कुराकर देखा,और चल दी,उसने यह बात सरदार के पास पहुंचा दी कि,गोधन पंचलैट जलाना जानता है। कौन?अपना गोधन,वह पंचलैट जलाना जानता है। परन्तु,गोधन तो पंचायत के बाहर है,सभी पंच सोच विचार में पड़ गए की गोधन को बुलाया जाए अथवा नहीं,अंत में सरदार ने निर्णय दिया,जब पंचायत की इज़्ज़त पानी में बही जा रही है तो,भाड़ में जाएँ ये व्यर्थ की बातें ,उसे बुलाने का निर्णय लिया गया। सरदार ने छड़ीदार को गोधन को बुला लाने के लिए भेजा,लेकिन छड़ीदार के कहने से गोधन पंचलैट जलाने नहीं आया। अब गुलरी काकी खुद उठकर गोधन को मनाने के लिए उसके पास गयी और उसे मनाकर ले आयी।गोधन ने चुपचाप पंचलैट जलाना शुरू कर दिया,उसने पूछा,"स्पिरिट कहाँ है!"स्पिरिट का नाम सुनकर फिर उन्हें अपनी भूल का एहसास हुआ,स्पिरिट तो नहीं लाए हैं,सभी फिर निराश हो जाते हैं। पर गोधन होशियार है,वह गरी के तेल से पंचलैट जलाएगा,मुनरी दौड़कर जाती हैं और गरी के तेल की मलसी ले आती है,गोधन कभी पम्प मारता है,कभी फूंकता है,थोड़ी देर बाद सनसनाहट के साथ पंचलैट जल जाती है।
      पंचलैट के जलने से सभी गांव वालों में प्रसन्नता की लहर दौड़ जाती है। पंच गोधन को पुनः जाति में ले लेते हैं। कीर्तनियों ने एक स्वर में महाबीर स्वामी की जय ध्वनि के साथ कीर्तन शुरू कर दिया। पंचलैट की रौशनी में सभी के मुस्कुराते हुए चेहरे स्पष्ट हो गए। गोधन ने सभी का दिल जीत लिया,मुनरी ने हसरत भरी निगाह से गोधन को देखा। आँखें चार हुईं और आँखों ही आँखों में बातें हुईं -कहा सुना माफ़ करना!मेरा क्या कसूर?
      सरदार ने गोधन को बहुत प्यार से पास बुलाकर कहा -तुमने जाति की इज़्ज़त रख ली है। तुम्हारा सात खून माफ़। खूब गाओ सलीमा का गाना।
      गुलरी काकी बोली-आज रात में मेरे घर में खाना गोधन।
गोधन ने एक बार फिर मुनरी की ओर देखा। मुनरी की पलकें झुक गयीं।




























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